Sunday, September 27, 2009

The Story of Bhagat Singh - अभय Sharma


आदरणीय अमित दा
इंकलाब ज़िंदाबाद

मैं नही जानता कि क्यों मुझे भगत सिंह से इतना प्यार है, मै नही जानता कि क्यों मुझे हिंदी से प्यार है, मैं यह भी नही जानता कि आपसे (अमिताभ बच्चन से) मुझे क्यों इतना अधिक प्यार है ।

कभी कभी हम नही जानते कि हम जो भी करते है ऎसा आखिर क्यों करते है, कभी कभी चाह कर भी हम अपने ही प्रश्नों के सही उत्तर क्यों नही ढूंढ पातॆ ।

स्वामी विवेकानंद से ही क्यों मुझे इतना लगाव है, क्यों मै हिन्दुस्तान और पाकिस्तान को फिर से एक साथ देखना चाहता हूं, आखिर क्यों मै परमाणु हथियारों के विरुद्ध आवाज उठाना चाहता हूं । कुछ एक सवाल हैं जो मेरे जहन में उठते हैं मगर जिनका जबाव मेरे पास नही है । मै नही मानता कि सभी प्रश्नों के उत्तर संभव है, या हर उत्तर का कोई न कोई प्रश्न होना आवश्यक है ।

यहां आज मै कुछ दो साल पहले लिखी गई भगत सिंह पर लिखी अपनी कविता दुबारा प्रस्तुत कर रहा हूं, संभव है मैने पहले यहां कभी न भी सुनाई हो और अगर सुनाई भी हो तो क्या फर्क पड़ता है, इस आशा के साथ आप लोगों के लिये यह कविता लिखी है कि आप भी आज शहीद-ए-आज़म को उनके 102वें जन्मदिन पर उन्हे याद कर लें ।

मनोज कुमार जी की शहीद मुझे बेहद पसंद है, खासकर उस फ़िल्म के सभी गाने बेहद लोकप्रिय हुए थे । ‘दम निकले इस देश की खातिर बस इतना अरमान है..’ या फिर ‘जिस चोले को पहन शिवाजी खेले अपनी जान पे, जिसे पहन झांसी की रानी मिट गई अपनी आन पे ..’ ।

आपका अधिक समय न लेते हुए कविता प्रस्तुत है –

कहता है मन आज कहो तुम कोई नई कहानी
ना हो जिसमें कोई राजा ना हो कोई रानी
आज़ादी के रंग भरे हों हो देशप्रेम से तानी
कह दे मनवा भगत सिंह की कह दे आज कहानी

हंस कर चले दीवाने जब फांसी थी उन्हे लगानी
बांहों में बांहें डाल यार के थे निकल पड़ॆ सैलानी
रो न सकी मां भगत बने थे आज़ादी के मानी
मर कर भी न मरे कभी थे वीर बड़े बलिदानी

पूरी कविता ( दो पद्य यहां नह लिख रहा हू) मेरी बैबसाईट पर उप्लब्ध है यहां उसका लिंक दे रहा हूं
http://www.angelfire.com/ab/abhayasharma/html/kaviweb.htm

कल आप सब से फिर मिलने आउंगा इस आशा के साथ यह पत्र यहीं समाप्त करता हूं, आप सब लोगों से जितना प्यार मिला है उसका अगर आधा भी आप सबसे कर सका तभी अपने जीवन को सार्थक मानूंगा ।

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है ..

अभय शर्मा 27 सितंबर 2009

Wednesday, September 23, 2009

Day 520 AB's blog - Nai subah ke naye ujaale

Yes Brother! Yes! we all dwell most of our lives in seeking and nodding our approval and our cnsent॥

The Most Respected brother

Sadar Chaan Sparsh
I seek approval of my acts here.. that it does not really disturb the peace of your mind.. that we (it is not I) seek and try to know each other, we share our feelings with each other.. we sing and pray for others.. we exhibit our love for the ones who are really lovable..
I can see your head nodding in the affirmative.. how could you deny being the head of this FmXt from each one of us indulging in sustaining our thoughts.. I know you are not that kind of a person who would say even if someday someone of us unknowingly or unitentionaly breaches the unwritten code of conduct here on the blog.. I promise.. I promise unto thee brother that I shall never ever indulge in any act that should ever give you the slightest headache..
We are proud of our association with you here and shall remian proud of these happy moments that we have been blessed with to live each day in your august company.. it is a matter of great joy and a sense of belonging over here gives a great releif..that it has been inculcated into us by you with your soothing words and constant encouragement for over a year now.. over 500 odd days.. I do not know of others.. but I consider myself truly a blessed child of the universe by simply knowing that I contribute here and have an audience in the one of the greatest man of our times.. that is you brother..
Yesterday.. I ventured into Bangla for the first time.. it was bit difficult for me to read all of it.. the Ekla chalo re that I copied pasted from Wikipedia.. it is all right I have never claimed my proficiency in that language.. only at an earlier date I was more or rather slightly better than my present levels.. the font size also mattered.. it does not make a difference to me..
Sharmila.. I knew somewhere in my mind that though you do sound in your name to be a bong.. it does not matter.. we are all the Indians first.. well said.. and I love your words.. your reciprocation.. I got the approval I had sought..
AtoZ, brother, what exactly is wrong with your health.. I d remember sometimes you mentioned of Alzhimiers disease.. Is that right.. I hope I am wrong.. I wish I read that in sme other context. whatever.. it should not deter you in anyway.. we are with you in any case.. always wishing that you have good health..
Bhaai.. ab izazat chahunga.. par aapko tatha sabhi logon ko is nai subah ke liye hardik shubhkamnayen..



नई सुबह के नये उजाले

नई सुबह के हम नये है उजाले
हमें रोक सकते नही अब अंधेरे
दुश्मनी क्या करोगे क्या चलाओगे खंजर
दुश्मनी दोस्ती में बदल जाओगे


न खंजर उठेंगे न बादल घिरेंगे
है उजालॊं की दुनिया उजाले मिलेंगे
नई दुनिया की रोशनी है निराली
नये फूल उपवन में हर दिन खिलेंगे
इतिहास जग का दुबारा लिखेंगे
अमृत पियेंगे अभय हम बनेंगे
अमन चैन दुनिया में कायम करेंगे
धरती के हम सब दुलारे बनेंगे
नई सुबह के हम नये है उजाले
हमें रोक सकते नही अब अंधेरे !
- अभय शर्मा
In essence.. we are the bright lights of the new dawn.. dark hours can not come in our way anyway.. how would you show enemity with the dagger in hands. the wrath shall soon turn into friendliness around.. the glory of the new dawn is such that flowers shall bloom everywhere around us.. we would rewrite history afresh.. having gulped the elixir of life we would not fear anymore..The peace shall get its chance.. the earth shall love us as its most beautiful kids..we are the bright lights of the new dawn.. dark hours can not come in our way anyway..
Love Affection and PyaarAbhaya Sharma September 24 2009
PS Old habits die hard.. bhaai bina gana sunaye to mai yah patrachar band nahi kar sakta.. aap sab ke liye Kishore da ka ek chhota sa geet pesh kar raha hoon sunkar batana kaisa laga aap logon ko..
सवेरे का सूरज तुम्हारे लिये है

ये बुझते दिये को ना तुम याद करना ..
http://www.youtube.com/watch?v=DlU1n_0SUa8

Sunday, September 20, 2009

अंधेरे का दीपक

अंधेरे का दीपक

है अंधेरी रात पर
दीवा जलाना कब मना है ?
(1)
कल्पना के हाथ से कम-
नीय जो मंदिर बना था,
भावना के हाथ ने जिसमें
बितानों का तना था,
स्वप्न ने अपने करों से
था जिसे रुचि से संवारा,
स्वर्ग के दुष्प्राप्य रंगों
से, रसों से जो सना था,
ढह गया वह तो जुटाकर
ईंट, पत्थर कंकडों को
एक अपनी शांति की
कुटिया बनाना कब मना है ?
है अंधेरी रात पर
दीवा जलाना कब मना है ?


(2)
बादलों के अश्रु से धोया
गया नभ-नील नीलम
का बनाया था गया मधु-
पात्र मनमोहक मनोरम,
प्रथम उषा की किरण की
लालिमा सी लाल मदिरा
थी उसी में चमचमाती
नव घनों में चंचला सम,
वह अगर टूटा मिलाकर
हाथ की दोनो हथेली,
एक निर्मल स्त्रोत से
तृष्णा बुझाना कब मना है ?
है अंधेरी रात पर
दीवा जलाना कब मना है ?
(3)
क्या घडी थी एक भी
चिंता नही जो पास आई,
कालिमा तो दूर, छाया
भी पलक पर थी ना छाई,
आंख से मस्ती झपकती,
बात से मस्ती टपकती,
थी हँसी ऎसी जिसे सुन
बादलॊं ने शर्म खाई,
वह गई तो ले गई
उल्लास के आधार, माना,
पर अथिरता पर समय की
मुसकराना कब मना है ?
है अंधेरी रात पर
दीवा जलाना कब मना है ?
(4)
हाय, वे उन्माद के झोंके
कि जिनमें राग जागा,
वैभवों से फेर आंखें
गान का वरदान मांगा,
एक अंतर से ध्वनित हों
दूसरे में जो निरंतर,
भर दिया अंबर-अवनि को
मत्तता के गीत गा-गा,
अंत उनका हो गया तो,
मन को बहलाने की खातिर,
ले अधूरी पंक्ति कोई
गुनगुनाना कब मना है ?
है अंधेरी रात पर
दीवा जलाना कब मना है ?
(5)
हाय, वे साथी कि चुम्बक-
लौह - से जो पास आये,
पास क्या आये, ह्रदय के
बीच ही गोया समाये,
दिन कटे ऎसे कि कोई
तार वीणा के मिलाकर
एक मीठा और प्यारा
ज़िंदगी का गीत गाये,
वे गये तो सोचकर यह
लौटनेवाले नही वे,
खोज मन का मीत कोई
लौ लगाना कब मना है ?
है अंधेरी रात पर
दीवा जलाना कब मना है ?
(6)
क्या हवाएँ थी कि उजड़ा
प्यार का वह आशियाना
कुछ ना आया काम तेरा
शोर करना, गुल मचाना,
नाश की उन शक्तियों के
साथ चलता जोर किसका,
किंतु ऎ निर्माण के
प्रतिनिधि, तुझे होगा बताना,
जो बसे हैं वे उजड़ते
हैं पृकति के जड़ नियम से
पर किसी उजड़े हुए को
फिर बसाना कब मना है ?
है अंधेरी रात पर
दीवा जलाना कब मना है ?


Tuesday, September 15, 2009

दुनिया नये इंसानो की

चिराग जलते नही ये दाग भी मिटते नही
दिमाग मिलते नही ये जख्म है भरते नही
खिजां की फ्स्ल है गुलशन भी अब तो खिलते नही
यह कैसी नस्ल है हमदम भी अब तो मिलते नही

जनाबे-वाला अमित साहब
आदाब, इस नाचीज़ का सलाम कुबूल फ़र्मायें, एक इंतहा से इस बात का इंतजार था कि जनाब कि खिदमत में कुछ अर्ज कर पाता, गोया कुछ लिख पाना मेरे नसीब में कहां, एक मुद्दत से अमन के लिये कुछ कह पाने की हसरत थी, इन अल्फ़ाज़ों से यक-ब-यक बयां तो नही होती फिर भी पेश करने की जुर्रत कर रहा हूं, -

वो शमा, शमां के जलते चिरागों में आज जागी है
कि अब कुछ और कहने को कहां कुछ बाकी है

है गुजारिश कि अमन की मन में बात जागी है
किसे कहें कि क्या कहें कि अब तो रात आधी है
एटम बम के हम नही कायल गो कि ये बर्बादी है
कोई कह दे अभय कि हां बस इक यही आज़ादी है

नही महसूस होती हो जहां, सांसे कहीं मुनासिब ही
नही महफ़ूज होती है वहां , बस्ती नई बसानी भी
मिरी दुनिया तिरी दुनिया की ही तो जानिब सी
लगाते आग हो पहले जहां, फिर मांगते हो पानी भी ।

चलो चलकर बसाते है कोई दुनिया नये इंसानो की ।

Monday, September 14, 2009

भारत की तस्वीर

भारत की तस्वीर

भारत को आगे लाने का अपना वादा
सबको लेकर साथ चलेंगें मन में साधा
नई भाषा नये भारत की नींव रखेगी
आने वाले कल की नई तस्वीर रचेगी

सुख सुविधाओं का सबको आराम मिलेगा
जो जैसा चाहेगा वैसा काम मिलेगा
हर मेहनतकश को कोई ईनाम मिलेगा
नई भाषा में सबको सम्मान मिलेगा

नही हमारा मंदिर से अब कोई नाता
परमाणु हथियारों का भी नही इरादा
नये रुप में जनता से हैं मिलने आये
भारत सबसे आगे हो इतना ही चाहें

गांव-गांव में बिजली पानी दाना होगा
सबके घर में पढ़ा लिखा एक बच्चा होगा
चलो चलें हम मिलकर कोई सपना देखें
शांति क्रांति का आज जगत को नारा दे दें ।

अभय शर्मा
यह एक राजनैतिक कविता थी जिसको मात्र एक शब्द के प्रत्यारोपण से मैने हिंदी (नई भाषा) के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिये उप्योग में ले लिया है, राजनीति से अपने को अलग रखना ही मेरे लिये उचित होगा, इस आशय के साथ ।

हिन्दी दिवस

आदरणीय भाईसाहब
सादर प्रणाम
किसी एक हिंदी दिवस पर लिखी यह कविता पुरानी हो चुकी है, मै सदैव चाहकर भी जब चाहूं तब कविता नही लिख पाता, यह वास्तव में एक कमजोरी है जिसका कोई इलाज नही है, वैसे तो मैं स्वयं को कवि नही मानता पर हां कुछ प्रयास इस दिशा में किये अवश्य हैं, बिना किसी सफलता या मामूली सफलता के साथ ।

हिंदी की त्रुटियों में अधिक परेशानी की बात यह है कि सामने वाला सहज ही पता नही लगा पाता कि कहीं कोई मात्रा छूट गई है अथवा कुछ शब्द रह गये हैं, मैने कई बार यह अनुभव किया है कि अंग्रेजी में टाईप करते वक्त भी कि कभी-कभी पूरा का पूरा शब्द ही टाईप होने से वंचित रह जाता है, कुछ लोग रिक्त स्थान की पूर्ति स्वयं कर लेते हैं, कुछ एक सोचते होगे कि क्या बेबकूफ़ है एक बार पढ़ कर देख लेता कि क्या लिखा है तो खुद अपनी कमजोर समझ जाता । चलिये यह तो लग ही रहेगा, आपकी तरह हर व्यक्ति तो पूर्ण नही हो सकता ।

मै नही कहता कि हमें दूसरों पर हिंदी थोपनी चाहिये, मै यह भी नही कहता कि अन्य भाषाओ का विरोध करके हिंदी को बढ़ावा दिया जाना चाहिये तथापि इतना अवश्य कहूंगा कि जितने लोग इस देश में हिंदी समझते हैं उनमें से कई एक इस बात को स्वीकार करने से कतराते फिरते है, कुछ एक लोग हिंदी में इसलिये भी बात करना पसंद नही करते की वे इसे अपनी तोहीन समझते है, एकाध ऎसे भी होंगे जिनके पास वास्तव में हिंदी का उपयोग करने ले लिये सर्वथा समय ही नही होगा, कुछ बेचारे चाहकर भी हिंदी नही जानने के कारण इसके उपयोग से वंचित रह जाते हैं ।मेरा यह उद्देश्य कतई नही है कि ये सब लोग हिंदी के प्रति अपनत्व का जामा पहन कर आगे आयें, बस हिंदी के प्रति प्रेम रखें यही इस देश के लिये काफी है ।

हिन्दी का आविष्कार
हमको तुझ से प्यार है भाषा
भारत की अब एक ही आशा
सबको एक साथ लेकर जब

हिन्दी फिर आगे आएगी
नई क्रांति की किरण फूट कर
विश्व पटल पर छायेगी!
भांति-भांति के प्रांत-प्रांत में भारतवासी

जब हिन्दी को गले लगायेंगे
एक छवि निखर कर आएगी

जग देखेगा यह सोचेगा
भारत कितना बदल गया है
एक छोटे से अंतराल में!
हम तुम सब संकल्प करें

हिन्दी भाषा के प्रचार में
दुविधाएं कितनी भी आए
हम कोई कसर ना छोडेंगे
संदेह नही है मेरे मन में

हम एक नया इतिहास रचेंगे!
हमको ऎसा कुछ करना है

हिन्दी को सरल बनाना है
समझ सकें सब भारतवासी
बिना किसी दिक्कत के जैसे
हिन्दी से हिन्दुस्तान बने

जग में हिन्दी का मान बढ़े!
मेरे मन में कुछ प्रश्नों के

उत्तर पहले आ जाते हैं
कभी उत्तर प्रश्न खोजते हैं
हिन्दी ऎसा ही एक उत्तर है
कि जिसका प्रश्न नही मिलता

यह जाकर हम अब किसे कहें!
पता नही चलता हिन्दी का

क्यों होता भारत में बहिष्कार
क्यों हिन्दी हमें नही स्वीकार
यह अंतर्मन की है पुकार
आगे बढ़कर फिर एक बार

कर दे हिन्दी का आविष्कार !

- अभय शर्मा
ab says:
September 14, 2009 at 6:53 pm
kavita sunder hai dhanyavaaad..