आदरणीय अमित दा
इंकलाब ज़िंदाबाद
इंकलाब ज़िंदाबाद
मैं नही जानता कि क्यों मुझे भगत सिंह से इतना प्यार है, मै नही जानता कि क्यों मुझे हिंदी से प्यार है, मैं यह भी नही जानता कि आपसे (अमिताभ बच्चन से) मुझे क्यों इतना अधिक प्यार है ।
कभी कभी हम नही जानते कि हम जो भी करते है ऎसा आखिर क्यों करते है, कभी कभी चाह कर भी हम अपने ही प्रश्नों के सही उत्तर क्यों नही ढूंढ पातॆ ।
स्वामी विवेकानंद से ही क्यों मुझे इतना लगाव है, क्यों मै हिन्दुस्तान और पाकिस्तान को फिर से एक साथ देखना चाहता हूं, आखिर क्यों मै परमाणु हथियारों के विरुद्ध आवाज उठाना चाहता हूं । कुछ एक सवाल हैं जो मेरे जहन में उठते हैं मगर जिनका जबाव मेरे पास नही है । मै नही मानता कि सभी प्रश्नों के उत्तर संभव है, या हर उत्तर का कोई न कोई प्रश्न होना आवश्यक है ।
यहां आज मै कुछ दो साल पहले लिखी गई भगत सिंह पर लिखी अपनी कविता दुबारा प्रस्तुत कर रहा हूं, संभव है मैने पहले यहां कभी न भी सुनाई हो और अगर सुनाई भी हो तो क्या फर्क पड़ता है, इस आशा के साथ आप लोगों के लिये यह कविता लिखी है कि आप भी आज शहीद-ए-आज़म को उनके 102वें जन्मदिन पर उन्हे याद कर लें ।
मनोज कुमार जी की शहीद मुझे बेहद पसंद है, खासकर उस फ़िल्म के सभी गाने बेहद लोकप्रिय हुए थे । ‘दम निकले इस देश की खातिर बस इतना अरमान है..’ या फिर ‘जिस चोले को पहन शिवाजी खेले अपनी जान पे, जिसे पहन झांसी की रानी मिट गई अपनी आन पे ..’ ।
आपका अधिक समय न लेते हुए कविता प्रस्तुत है –
कहता है मन आज कहो तुम कोई नई कहानी
ना हो जिसमें कोई राजा ना हो कोई रानी
आज़ादी के रंग भरे हों हो देशप्रेम से तानी
कह दे मनवा भगत सिंह की कह दे आज कहानी
हंस कर चले दीवाने जब फांसी थी उन्हे लगानी
बांहों में बांहें डाल यार के थे निकल पड़ॆ सैलानी
रो न सकी मां भगत बने थे आज़ादी के मानी
मर कर भी न मरे कभी थे वीर बड़े बलिदानी
पूरी कविता ( दो पद्य यहां नह लिख रहा हू) मेरी बैबसाईट पर उप्लब्ध है यहां उसका लिंक दे रहा हूं
http://www.angelfire.com/ab/abhayasharma/html/kaviweb.htm
कल आप सब से फिर मिलने आउंगा इस आशा के साथ यह पत्र यहीं समाप्त करता हूं, आप सब लोगों से जितना प्यार मिला है उसका अगर आधा भी आप सबसे कर सका तभी अपने जीवन को सार्थक मानूंगा ।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है ..
अभय शर्मा 27 सितंबर 2009
आपका अधिक समय न लेते हुए कविता प्रस्तुत है –
कहता है मन आज कहो तुम कोई नई कहानी
ना हो जिसमें कोई राजा ना हो कोई रानी
आज़ादी के रंग भरे हों हो देशप्रेम से तानी
कह दे मनवा भगत सिंह की कह दे आज कहानी
हंस कर चले दीवाने जब फांसी थी उन्हे लगानी
बांहों में बांहें डाल यार के थे निकल पड़ॆ सैलानी
रो न सकी मां भगत बने थे आज़ादी के मानी
मर कर भी न मरे कभी थे वीर बड़े बलिदानी
पूरी कविता ( दो पद्य यहां नह लिख रहा हू) मेरी बैबसाईट पर उप्लब्ध है यहां उसका लिंक दे रहा हूं
http://www.angelfire.com/ab/abhayasharma/html/kaviweb.htm
कल आप सब से फिर मिलने आउंगा इस आशा के साथ यह पत्र यहीं समाप्त करता हूं, आप सब लोगों से जितना प्यार मिला है उसका अगर आधा भी आप सबसे कर सका तभी अपने जीवन को सार्थक मानूंगा ।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है ..
अभय शर्मा 27 सितंबर 2009
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