Sunday, March 15, 2009

लोकसभा चुनाव

लोकसभा चुनाव

15वीं लोकसभा के चुनावों का समय निकट है, देश के आगे एक बार फिर नई सरकार के गठन के लिये नई चुनौतियां सामने आ रही हैं, किसे चुनें किसे न चुनें, किस पार्टी को विजय दिलाई जाये किसे परास्त किया जाये । हमारा अगला प्रधानमंत्री कौन हो, किसके हाथ में देश की बागडोर हो, कौन देश को आगे ले जाने में आगे हो ।

यही नही कितने ही अन्य सवाल इस लोक सभा चुनाव से जुडे हैं । कांग्रेस को एक बार फिर अजमाया जाये या भाजपा या फिर किसी अन्य पार्टी को देश की कमान थमाई जाये । इन प्रश्नों के उचित उत्तर तो 16 मई को ही मिल पयेंगें जब चुनावी नतीजे हमारे सामने होंगे, तभी यह सुनिश्चित हो पायेगा कि भारतीय जनता का ऊंट किस करवट बैठता है ।

कुछ एक सवाल है जिन के उत्तर भी उपलब्ध है तथा उनके चुनाव से जुडे होने में कम से कम मेरे मन में संशय या संदेह की कम ही गुंजाइश है । पहला सवाल है कि क्या देश को एक विभाजित जनादेश देकर क्या हम देश के हित की बात कर सकते हैं । दूसरा प्रश्न यह उठता है कि क्या इस देश में कोई एक पार्टी है जिस पर समस्त देश को भरोसा हो सकता है । तीसरा अहम मुद्दा यह है कि क्या चुनावों से पहले पार्टी को अपने प्रधानमंत्री उम्मीदवार के दावेदार का नाम जनता को बताना आवश्यक हो या न हो ।

अभय शर्मा, भारत, 15 मार्च 2009 6.50 सायंकाल ।

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