Wednesday, October 21, 2009

Respected Brother
Sadar Charan Sparsh
Yesterday when I wanted to submit the poem.. I could not do it.. and today when I did.. I had modified it.. I realise the important points which were not made part of my submission are reproduced here..
नही नही कविता ऐसी तुम नही लिखो
कुछ भी चाहे कहो गरीब से मगर डरो
उसकी दुविधा मजबूरी का ख्याल रखो
नही जगत में वैभव कोई संग लाया था
और नही कुछ कोई वापस ले जायेगा
भोले मानुस भोलापन तब काम आयेगा
जग को जितना तू देगा दुगुना पायेगा
….
कुछ एक पंक्तियां मुख्य कविता में इस प्रकार थीं
मन में उत्कंठा थी मेरे
था दिल में हाहाकार
कोई राह दिखाने वाला
नही मानव था तैयार
सिग्नल हरा हुआ जिस पल
तब पीछे छूट गया संसार
सांस सांस से कहती थी
क्यों बेबस हैं सरकार
नही प्रतीक्षा कभी बुरी थी
ना जलसा कोई बेकार
रह जायेगा यहीं धरा
क्या ले जाओगे पार ।


नही, नही भाई यह व्यंग नही है यह तो आपके मन की व्यथा है, आप चाह कर भी उन लोगों कि कोई मदद नही कर पाये, आपके तर्क से मै सहमत होना चाहता हूं पर हालात मुझे कुछ और कहने पर मजबूर कर रहे हैं, आपका आभारी हूं कि आपके ज़रिये कुछ ऐसे लोगों को जानने- मिलने का अवसर मिल सका जिसकी शायद मैने कभी कल्पना भी नही की थी । मेरे प्रयास से अगर कुछ लोगों का दिल बहलता है तो मेरा भी दिल यहां लगा ही रहेगा ।


दिल बहल तो जायेगा
इस खयाल से
हाल मिल गया तुम्हारा
अपने हाल से …

The link for my friends who may like to listen to this beautiful Khamoshi song..
http://www.youtube.com/watch?v=6T0xrV4BHG0
I wish I could translate this song for Rose, Carla, Zhenya and Renate.. and many more yes Rochelle too would like it.. May I request you Sudhir to take this opportunity to please me.. for once.. not for me but for some of my very very dear friends who do not understand Hindi.. Hemant Kumar has sung many good songs but this one is probably his best..
Love you and Love you all
Abhaya Sharma
October 21 2009

बेबस और लाचार

खड़ा था एक चौराहे पर
अपनी गाड़ी को रोक कर
देख रहा था हाथ पसारे
कुछ बूढॆ-बच्चे भीख मांगते

सोच रहा था अपने मन में
क्या उन्हे मिलेगा जो मै दूंगा
किसी की झोली में सुख भर दूं
कैसे दूर दुख इनके कर दूं

क्या जो भी इनके हाथ लगेगा
नही कोई दूसरा हथिया लेगा
क्या इनका भला कभी भी होगा
नही हो पाता मुझे भरोसा

सांस सांस से कहती जाती
भाई कुछ कर दो उपकार
भीख मांगने का भारत में
किसने, लगा दिया बाज़ार

मन में उत्कंठा थी भय था
और दिल में थी चीख-पुकार
भटक रहा व्याकुल मन कहता
हे भगवन क्या खूब रचा संसार

रह जायेगा यहीं धरा सब
कोई भी क्या ले जायेगा पार
फिर कैसे बिक जाते जग में
भूखे-प्यासे और बेबस लाचार ।


अभय शर्मा
20 अक्टूबर 2009 11.55

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